जब हनुमान जी ने सत्यभामा, गरुण और सुदर्शन चक्र का घमण्ड चूर किया(Part-1),
एक बार सुदर्शन चक्र को स्वयं की शक्ति पर अभिमान हो गया था और भगवान श्री कृष्ण ने उनके अभिमान को दूर करने के लिए श्री हनुमान जी की सहायता ली थी। सुदर्शन चक्र को यह अभिमान हो गया था कि उसने इंद्र के वज्र को निष्क्रिय किया था। वह लोकालोक के अंधकार को दूर कर सकता है। भगवान श्री कृष्ण अतंत उसकी ही सहायता लेते हैं।
भगवान अपने भक्तों का सदा कल्याण करते हैं इसलिए उन्होंने हनुमान जी का स्मरण किया तत्काल हनुमान जी द्वारिका आ गए। जान गए कि श्री कृष्ण ने क्यों बुलाया है। श्री कृष्ण और श्री राम दोनों एक ही हैं, वह यह भी जानते थे इसलिए सीधे राजदरबार नहीं गए कुछ कौतुक करने के लिए उद्यान में चले गए। वृक्षों पर लगे फल तोड़ने लगे, कुछ खाए, कुछ फेंक दिए, वृक्षों को उखाड़ फेंका, कुछ को तोड़ डाला तथा वाटिका को वीरान बना दिया। फल तोड़ना और फेंक देना, हनुमान जी का मकसद नहीं था, वह तो श्री कृष्ण के संकेत से कौतुक कर रहे थे।
बात श्री कृष्ण तक पहुंची, किसी वानर ने राजोद्यान को उजाड़ दिया है। श्री कृष्ण ने सेनाध्यक्ष को बुलाया। कहा, आप सेना के साथ जाएं तथा उस वानर को पकड़कर लाएं। श्री कृष्ण मन ही मन मुस्करा रहे थे। सेनाध्यक्ष सेना सहित तत्काल वाटिका पहुंचे तथा उन्होंने हनुमान जी को ललकार कर कहा, बाग क्यों उजाड़ रहे हो? फल क्यों तोड़ रहे हो? चलो, तुम्हें श्री कृष्ण बुला रहे हैं। हनुमान जी ने सेनाध्यक्ष से कहां, मैं किसी कृष्ण को नहीं जानता। मैं तो श्री राम का सेवक हूं। जाओ, कह दो, मैं नहीं आऊंगा। सेनाध्यक्ष क्रोधित होकर बोले, तुम नहीं चलोगे तो मैं तुम्हें पकड़कर ले जाऊंगा। हनुमानजी ने सेनाध्यक्ष को पूंछ में दबोच कर दूर राजमहल की तरफ फैंक दिया।
सेनाध्यक्ष ने दरबार में पहुंचकर भगवान को बताया, वह कोई साधारण वानर नहीं है। मैं